कोरोना काल में मधुमक्खी पालन एक अच्छा रोजगार का विकल्प हो सकता है। दरअसल, ‘मधुमक्खी’ मनुष्य की सबसे छोटी मित्र है, जो शहद के अलावा अन्य अनेक उत्पाद जैसे, मोम, रॉयल जेली इत्यादि भी बनाकर देती है। यह परागण प्रक्रिया में भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा अब झारखंड के खूंटी जिले में शहद से एक नया उत्पाद तैयार किए जाने को लेकर एक नई पहल की जा रही है।
दरअसल, लोग बहुत जल्द हनी चॉकलेट अर्थात शुद्ध शहद से बनी चॉकलेट का स्वाद ले पायेंगे। जी हां, तोरपा प्रखंड की बारकुली पंचायत के महिला मंडल से जुड़ी महिलाएं इस काम को अंजाम देंगी और जल्द ही हनी चॉकलेट का उत्पादन शुरू कर देंगी। इसका प्रशिक्षण भी महिलाओं को दिया जा चुका है। शहद के लिए बिहार भेजे गये मधुमक्खी के बक्सों के वापस आने के बाद मधु से चॉकलेट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।
रोजगार के लिए सुनहरा अवसर
फरवरी महीने में खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय श्रीवास्तव ने कसमार में 30 महिलाओं के बीच 300 इटालियन मधुमक्खी के बक्से का वितरण भी किया था। खादी ग्रामोद्योग भारत ग्रामोद्योग के हेडेम एग्रोटेक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के सहयोग से बारकुली पंचायत के कसमार गांव की महिलाओं को मधुमक्खी पालन और प्रबंधन का तीन सप्ताह का प्रशिक्षण दिया गया है। प्रशिक्षक जोहर ग्राम विकास टेक्निकल स्टोर के अशोक ने बताया कि मधुमक्खी पालन कृषि आधारित व्यवसाय है। इस व्यवसाय को कोई भी व्यक्ति तीन सप्ताह तक कुशल प्रबंधन का प्रशिक्षण लेकर मधुमक्खी पालन का काम शुरू कर सकता है। इस क्षेत्र में रोजगार की आपार संभावनाएं हैं। महिलाएं और युवाओं के लिए इस क्षेत्र में रोजगार के लिए सुनहरा अवसर है।
कम समय और कम लागत में कर सकते हैं अच्छी कमाई
मधुक्खी पालन करने पर एक साथ शहद, मोम, प्रोपोलिस आदि उत्पादों के जरिए अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने बताया कि बाजार में शहद लगभग तीन सौ रुपये प्रति किलो की दर पर बिकती है। कम समय का प्रशिक्षण और कम पूंजी से मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया जा सकता है। बेरोजगार लोग आसानी से मधुमक्खी पालन कर अपना जीवन स्तर सुधार सकते हैं। अच्छी आमदनी और कम लागत को देखकर ही महिलाओं का झुकाव इस ओर हुआ है।
तीन सौ रुपये किलो बिकने वाला शहद हर साल किया जा सकता है एकत्रित
प्रशिक्षक आशोक कुमार ने बताया कि मौसम के हिसाब से विभिन्न जिलों में मधुमक्खियों के बॉक्स भेजकर हर साल एक हजार से बारह क्विंटल शहद एकत्रित हो सकता है, जहां मधुमक्खी पालन होता है, वहां फसलों में पराग कण की क्रिया तेजी से होती है और पैदावार भी 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि विभिन्न क्षेत्रों में मधुमक्खियों के बक्से को ले जाकर उन्हें विभिन्न स्थानों पर रखा जाता है। मधुमक्खियों द्वारा इनमें शहद जुटाया जाता है। पर्याप्त शहद जमा हो जाने पर इन बक्सों को एकत्रित किया जाता है और शहद को बोतलों व डिब्बों में भरा जाता है और बाजार में भेजा जाता है।
कसमार की महिलाओं ने लाखों रुपए की नर्सरी की तैयार
कसमार में महिलाओं ने बताया एक स्थानीय फूल ‘ठेलकांटा’ के कारण लगभग 10 दिन मधुमक्खी के बक्से गांव में रखे गये थे। उसके बाद उन्हें ओरमांझी भेजा गया। वहां करंज और तरबूज की खेती है। बाद में उन्हें रामगढ़ जिले के गोला भेजा जायेगा। इस प्रकार बारकुली पंचायत की महिलाएं आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते हुए बहुत जल्द इमली प्रोसेसिंग से भी जुड़ेंगी। आत्मनिर्भता की ओर कदम बढ़ाते हुए कसमार की महिलाओं ने लाखों रुपए की नर्सरी तैयार की है। बहुत जल्द महिलाएं इमली प्रोसेसिंग का काम भी शुरू करेंगी।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)