गौरतलब है की केंद्र में कांग्रेस की सरकार रहते प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू किया गया था। उद्देश्य था , प्रशासनिक पारदर्शिता । हालाँकि खामियाजा खुद कांग्रेस की सरकार को भुगतना पड़ा , यहां तक कि कुछ केंद्रीय मंत्रियों को जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस के भ्रष्टाचार के मुद्दे जम कर उछाले गए थे ।
छत्तीसगढ़ में भी पिछली भाजपा सरकार में अधिकारीयों ने पैतरा बदला और RTI एक्टिविस्ट को जानकारी प्राप्त करने में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा । अब यही परिपाटी कांग्रेस की सरकार में बदस्तूर जारी है। यानि पारदर्शिता पर अंकुश। सबसे बड़ी बात यह है कि , अधिकतर विभागों में जो RTI अधिकारी नियुक्त किये गए हैं , या तो वे प्रशिक्षण प्राप्त नहीं हैं या अंगूठा छाप हैं। कुछ तो विभागों में जबरन ठूंसे गए हैं , जालसाज अधिकारीयों की कारगुजारी पर पर्दा डालने के लिए।
सन्दर्भ पर्यटन मंडल मुख्यालय के “फाइल चोरी ” मामले में आरोपित श्रीरंग शरद पाठक की जाँच प्रतिवेदन से जुड़ा है। ज्ञात हो कि लगभग 2 वर्ष पूर्व 3 मई 2019 को श्रीमान श्रीरंग पाठक अपने सहयोगी अमित दुबे जी के साथ ( जबकि उस दिन श्रीमान पाठक छुट्टी पर थे ) कार्यालयीन समय से पूर्व लेखाधिकारी कक्ष में प्रवेश करते हैं और कुछ खास फाइल निकल कर अपने साथ ले जाते है। अब उनके इस कृत्य को मंडल के अधिकारी कर्मचारी चोरी करार देते हैं , यानि मंडल के ईमानदार कर्मठ सम्माननीय पाठक जी को “चोर” साबित करने पर तुल जाते हैं , यहां तक की तत्कालीन प्रबंध संचालक श्रीमान M T NANDI जी भी इनकी बातों में आकर एक जाँच संस्थित कर देते हैं , और जाँच अधिकारी श्री शिवदास तम्बोले अब तक उस जांच पर कुंडली मार कर समय काटने के लिए तम्बोला खेलने में व्यस्त रहते हैं ।
हमारे सूचना के अधिकार में जाँच प्रतिवेदन मांगने पर अचानक जनसम्पर्क अधिकारी श्रीमती अनुराधा जी दुबे स्वयं ही श्री रंग शारद पाठक पर लगे आरोपों को निराधार साबित करते हुए उनको दोषमुक्त करार कर देती हैं। और जाँच रिपोर्ट तथा CCTV फुटेज पाठक जी की निजता से जुड़ा मामला बता कर देने से इंकार कर देती हैं , जो की घोर आश्चर्य का विषय है।
जहाँ तक हमारी जानकारी में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में केवल सरकारी दस्तावेजों की स्वच्छ प्रमाणित प्रतिलिपि देने का प्रावधान है , जानकारी बना कर देने या आरोपी को क्लीन चिट देने का नहीं। वैसे भी श्रीमान नंदी जी ने अपने कार्यकाल में जाँच रिपोर्ट क्यों नहीं मंगाई और जाँच अधिकारी को अनंत काल तक का वक्त क्यों दे दिया , अपने आप में तमाम संदेहों को जन्म देता है।
बहरहाल यहां हम एक और मामले के बारे में सुधि पाठकों को अवगत करा दें कि पर्यटन मंडल के जनसूचना अधिकारी तो सूचना आयुक्त के आदेश के पश्चात् भी चाही गई जानकारी प्रार्थी को देने से इंकार कर रहे हैं , क्योंकि उन्हें तत्कालीन प्रबंध संचालक से जुर्माने की मोटी रकम वसूल कर मंडल के खाते में जमा जो करवानी है , यानि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे , यानि सूचना आयुक्त के आदेश की भी धज्जियाँ फुर्र …. इति