बिलासपुर से कमल दुबे के साथ अजय शर्मा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार नवंबर 2016 में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत भर में काष्ठ आधारित उद्योग(स्थापना एवं विनियमन) दिशा-निर्देश जारी किये, जिसका राजपत्र में भी प्रकाशन हुआ।
कुल अठारह पन्नों के इस राजपत्र में प्रकाशित इन दिशा निर्देशों की फेहरिस्त काफी लंबी है, फिलहाल इसके पृष्ठ 4 में छपे निर्देश की बात जिसमें कहा गया है कि ” पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा अन्य राज्यों में निकटतम अधिसूचित वनों और संरक्षित क्षेत्रों की सीमा से सामान्यतः 10 किलोमीटर की आकाशीय दूरी के भीतर काष्ठ आधारित उद्योग स्थापित करने की अनुमति नहीं होगी।” इसमें ये प्रावधान भी है कि विशेष परिस्थितियों में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में केंद्र सरकार से अनुमोदन लेने के बाद राज्य स्तरीय समिति ऐसे स्थानों पर काष्ठ आधारित उद्योग स्थापित/प्रचलित करने की अनुमति दे सकती है।
अब छत्तीसगढ़ के वन-विभाग ने इन दिशा निर्देशों को कितनी गंभीरता से लिया उसकी एक बानगी ये है कि छत्तीसगढ़ के एक जिले के वनमंडलाधिकारी ने हाल ही में कुछ आरा मिलों के इन दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए नोटिस जारी कर पंद्रह दिनों में जवाब देने के लिये कहा है। अब नोटिस पाने वाले काष्ठ उद्योग संचालक इस नोटिस से असमंजस में हैं, इनमें से कुछ एक की आरामिलें चालीस सालों से संचालित हो रहीं हैं। वहीं कुछ आरामिलों के लाइसेंस 2019 तक नवीन किये गये हैं, 2017 के बाद आरामिलें ऐसी जगहों में स्थानांतरित भी हुई हैं और कुछ के लाइसेंस 2022 तक वैध हैं….. पंद्रह दिनों के बाद उनका क्या होगा ये प्रश्न उनके सामने मुँहबायें खड़ा है?
अब उनका क्या होना है ये तो भविष्य के गर्त में है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि भारत के राजपत्र में प्रकाशित इन दिशा-निर्देशों के अनुसार इसके परिपालन के लिये क्या राज्य स्तरीय समिति बनी? अगर बनी तो क्या कम से कम तीन महीनों में इसकी बैठकें हुई? (राजपत्र में राज्य स्तरीय समितियों के गठन और इसकी बैठकों को लेकर स्पष्ट निर्देश हैं). अब अगर बैठकें हुई तो उसमें किस बात पर चर्चा हुई?
2016 के निर्देशों का पालन 2021 में सुनिश्चित किया जा रहा है
इस मामले में जब exposecg ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री राकेश चतुर्वेदी जी से पक्ष जानना चाहा तो ज्ञात हुआ कि विगत चार वर्षों से वन विभाग लगातार पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से आकाशीय दूरी 10 किलोमीटर के स्थान पर 4 किलोमीटर रखना चाह रहा है , पर अब तक अनुमति नहीं मिली।लिहाजा प्रभावित आरा मीलों को नोटिस जारी किया जाकर 20 अगस्त तक जवाब तलब किया गया है , पर उन्हें व्यवस्थापन के लिए और समय दिया जायेगा. फिर भी यदि आरा मिल मालिक चाहें तो उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं ..इति।