छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड का संस्थागत ढांचा शुरू से ही विवादों के घेरे में रहा , दरअसल इसका उद्भव ही नीव विहीन था , या यूँ कहे कि कमजोर नीव का था। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद यहाँ के कर्णधार आई ए एस लॉबी ने टूरिज्म कॉरपोरेशन न बना कर टूरिज्म बोर्ड बनाया। मजे की बात तो ये है कि इस रजिस्ट्रेशन भी किसी NGO की तरह स्थानीय फर्म एंड सोसायटी रजिस्ट्रार कार्यालय में करवा दिया गया , जिससे इसमें बैठे डायरेक्टर इसे अपने बाप दादा की जागीर की तरह चला सकें। सरकार से १०० % अनुदान खाने वाला छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड के अपने बायलॉज हैं , जो तत्कालीन फाइनेंस सेक्रेटरी ने जीमने के हिसाब से बनवा लिए। यहाँ तक कि बंटवारे में आने वाला अमला भी निचले स्तर का लिया गया। तब मध्यप्रदेश का एक भी सक्षम अधिकारी छत्तीसगढ़ आने को तैयार नहीं था , लिहाजा अधिकांश रिसेप्शनिस्ट, डाटा एंट्री ऑपरेटर , होटल मोटल के मैनेजर जैसे लोग छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड के माध्यम से सरकारी फण्ड निगलने यहां पैर जमा लिए। इन्ही लोगों में बचन राइ , भोमिक , पाठक भी थे जो बाद में GM बने या बनने का सपना देखते तमाम जालसाजी में लिप्त रहे।
शरुआत में टूरिज्म की नैय्या पार लगाने केरला टूरिज्म बोर्ड से एक केवट श्री ए जयतिलक , आई ए एस , को प्रबंध संचालक के तौर पर लाया गया , जिन्होंने एक मुकाम तक छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण देसी पर्यटन स्थलों को विदेशो तक ख्याति दिलाई। ये बात और है कि उनका तरीका हाई फाई था , शबाब कबाब से लिपटा हुआ , क्योंकि वे GOD’S OWN COUNTRY से जो आये थे। कालांतर में भाजपा सरकार ने जोगी के इस केरलाइट मांझी को वापस भेज दिया और प्रदेश के जंगल साहबों को पर्यटन बोर्ड में स्थापित करना शुरू कर दिया , जो तत्कालीन कथित कद्दावर पर्यटन मंत्री के हाथों की कठपुतली मात्र बन कर रह गए और उसके उद्देश्यों की पूर्ति हर दृष्टि से करते रहे। इधर मध्य प्रदेश से आये कार्टूनिस्टों ने उछल कूद मचा कर मंत्री से अपनी क्रमोन्नति पदोन्नति फर्जी तरिके से करवा ली और वे ही छत्तीसगढ़ पर्यटन के कर्णधार बन गए। जहाँ जोगी होटल मोटल चलने के विरोधी थे , वहीं अब जगह जगह मोटल विकसित होने लगे , जम कर कमीशन खोरी चली। लिहाजा पाठक ने भी बहती गंगा में हाथ धो लिए और ठेकेदारों को नियम विरुद्ध अतिरिक्त पेमेंट पकड़ा कर कमीशन ऐंठ लिया जिसकी एक CD एक्सपोस सी जी के पास भी है।
इसी बीच एक्सपोज़ सी जी को अपनी तहकीकात में ये भी पता चला कि छत्तीसगढ़ टूरिज्म के बायलॉज में १०० % अनुदान को ढकोसने की कई गलियां मौजूद हैं जिनका हिसाब भी देना इस बोर्ड को आवश्यक नहीं है। साथ ही साथ चूँकि ये एक कॉर्पोरेशन न होकर बोर्ड होने की वजह से फौरी तौर पर शासन के नियंत्रण से बाहर है , अर्थात स्वयं निर्णय लेने में सक्षम भी है , यानि केबिनेट के लिए निर्णय , चाहें तो बोर्ड मेम्बरान नकार सकते हैं। मतलब किसी भी अधिकारी कर्मचारी की पोस्टिंग / डेपुटेशन में शासन हस्तक्षेप नहीं कर सकता। फिर भी ऐसा हुआ है , हो रहा है , और होता रहेगा , क्योंकि ये इंक्रिडेबल छत्तीसगढ़ है। ….इति