Thursday, April 10th, 2025

छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड में “कहीं ये वो तो नहीं “

शायद किसी अंग्रेज अफसर ने भारत दौरे के बाद अभद्र टिपण्णी की थी , “इंडिया इस ए व्हास्ट लैट्रीन ” |

सन 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार आयी तब आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक महती योजना की शुरुआत की , सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान। इस योजना के तहत स्वच्छता मिशन के लिए केंद्र और राज्य सरकारें एक जुट होकर देश प्रदेश को स्वच्छ बनाने जुट गए। शहरों से लेकर गावों तक साफ सुथरे दिखाई पड़ने लगे। विशेषकर लगभग सभी गांव घरों में शौचालय बनाये जाने लगे , शहरों में भी पुराने बने शौचालय सुधारे जाने लगे। लिहाजा सरकारी दफ्तर भी स्वच्छता अभियान का हिस्सा बन गए। वहां के शौचालय भी टॉयलेट में बदलने लगे ।

खूब जोरशोर से प्रचार प्रसार किया जाने लगा। पूरा देश सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के नारों , पोस्टरों , विज्ञापनों और होर्डिंग्स से पट गया। प्रत्येक व्यक्ति जागरूक होने लगा , महिलाओं बच्चों को भी इस अभियान का हिस्सा बनाया गया , ” जिस घर में शौचालय नहीं , उस घर बेटी का रिश्ता नहीं “. यहाँ तक कि इस अभियान के ब्रांड एम्बेस्डर अक्षय कुमार को लेकर टॉयलेट एक प्रेम कथा भी बनाई गई। लिहाजा स्वच्छता की बयार चल पडी और पूरा भारत धीरे धीरे साफ सुथरा होने लगा।

मेरे शहर के सरकारी शौचालय भी अब खुली हवा में साँस लेने लगे। जिन शौचालयों में साँस रोक कर जाना पड़ता था , वहां अब एक्सहॉस्ट फैन ने साफ हवा की शिरकत करा दी। पर धीरे धीरे मेरे शहर के ऑफिसियल टॉयलेट्स फिर सरकारी शौचालय में परिवर्तित होने लगे हैं। मंत्रालय , निदेशालय से लेकर सरकारी दफ्तरों के टॉयलेट्स की स्थिति फिर खराब हो गई है। कहीं पॉट्स टूटे हैं कहीं टोंटियां , कहीं बेसिन टूटे हैं तो कहीं पाइपें और नालियां। रखरखाव के आभाव में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान दम तोड़ रहा है।

इन सब से अलग एक और समस्या भी है। अमूमन महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग बनाये गए टॉयलेट्स में अब तक थर्ड जेंडर के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। “वो ” आज भी भटकते हुए कभी पुरुष कभी महिला शौचालय इस्तेमाल करते देखे जा सकते हैं। है न विश्वव्यापी समस्या ?

खैर जनाब हम आपका ध्यान छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के मुख्यालय की ओर लाना चाहते हैं। CSIDC और उद्योग विभाग की इस बिल्डिंग के दूसरे माले पर काबिज पर्यटन मंडल का कार्यालय भी खस्ताहाल शौचालयों की समस्या से जूझ रहा है। यहाँ के VIP टॉयलेट्स को छोड़ कर बाकी सभी नाक ऊँगली से दाब कर जाने लायक हो गए हैं। हालाँकि जिम्मेदारी तो CSIDC के अधिकारीयों की है कि वे इसे दुरुस्त रखें , पर तमाम शिकायतों के बाद नतीजा सिफर ही है। लिहाजा अधिकारी कर्मचारी लघुशंका दीर्घशंका के लिए यहां वहां भटक रहे हैं। वैसे तो कर्मचारियों के हर चैंबर अटैच टॉयलेट्स से सुसज्जित हैं , पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग अलग व्यवस्था भी है , पर रखरखाव निचले स्तर का है। यहां प्रबंध संचालक के चैंबर के ठीक सामने महिला अधिकारीयों कर्मचारियों का भी एक चैंबर भी है , जाहिर है इसका अटैच टॉयलेट महिलाओं के लिये आरक्षित है , पर मंडल कार्यालय का एक कर्मचारी इस टॉयलेट का बेखौफ इस्तेमाल करता आ रहा है।

अब इसे मंडल के दूसरे कर्मचारी अलग अलग निगाह से देखने लगे हैं , क्या ढूंढने जाता है ” वहां ” या “कहीं ये वो तो नहीं ” …इति

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