छत्तीसगढ़ की आबोहवा पहले से ही काफी प्रदूषित है तिस पर कोयला उगलते कल कारखाने छत्तीसगढ़ को रहने लायक छोड़ ही नहीं रहे हैं विशेषकर राजधानी रायपुर चारों तरफ औद्योगिक प्रदूषण से प्रभावित है यह बात और है की छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल झूठे आंकड़े प्रसारित कर आम जनता को गुमराह करता रहता है छत्तीसगढ़ प्रदूषण मंडल के अनुसार रायपुर का प्रदूषण वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण है , जबकि ऐसा नहीं है । छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगे औद्योगिक क्षेत्र उरला और सिलतरा सहित मंदिर हसौद में स्थापित संयंत्र इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कहे जा सकते हैं ।उरला औद्योगिक क्षेत्र की वजह से पहले ही रायपुर का प्रदूषण मानक अत्यधिक था । वही बड़े औद्योगिक खदानों के वर्चस्व को तोड़ने के लिए छोटे-छोटे स्पंज और फेरों अलायस उद्योग को प्रथम कांग्रेस शासन के समय परमिशन देकर प्रदूषण को और बढ़ाया गया अब उरला और सिलतरा औद्योगिक क्षेत्र का प्रदूषण मानकों के स्तर को पार कर चुका है यह क्षेत्र अब क्रिटिकल पोलूशन जोन में आ चुका है यहां और सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के जारी गाइड लाइन के अनुसार और अधिक उद्योग लगाने की संभावनाएं अब नहीं है, ना ही किसी उद्योग को एक्सपेंशन के लिए अनुमति देने की संभावनाएं हैं । सन 2002 में प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने यह घोषणा की थी कि अब कोल आधारित उद्योग क्षेत्र में नहीं लगाए जाएंगे वही छोटे छोटे उद्योगों को अनुमति देकर प्रदूषण स्तर बर्बाद कर दिया गया । नतीजतन फेफड़े से संबंधित बीमारियां आम जनता को लिए मुसीबत बन गई | सन 2008 में तो नए कल कारखाने और पुराने उद्योगों के विस्तार की अनुमति भी रद्द कर दी गई थी। औद्योगिक क्षेत्र सिलतरा में जायसवाल नेको के एक्सपेंशन के लिए आज जन सुनवाई होनी है जबकि यह क्षेत्र क्रिटिकल पोलूशन जोन में है और इसके एक्सपेंशन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए | के प्रभावित गांव के ग्रामीण आज संभवत जनसुनवाई का विरोध करेंगे