छत्तीसगढ़ अपनी खूबसूरत हरियाली की वजह से पूरे देश में एक अलग ही पहचान रखता है | कलकल बहती नदियां , दुर्गम पहाड़ियों की ऊंचाई से गिरते झरने , समृद्ध वनों से आच्छादित घाटियां इसकी खूबसूरती को और भी बढ़ाते हैं | यही वजह है कि छत्तीसगढ़ अपनी हरित आभा की वजह से पूरे देश के पर्यावरण विदों और सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है | वैसे तो छत्तीसगढ़ 44% वनों से आच्छादित है परंतु अभी भी वन विभाग के अधीनस्थ ऐसा बहुत बड़ा भूभाग है जो बंजर पथरीला एवं वन विहीन है। मीलों तक फैला ऐसा पथरीला बंजर बलौदा बाजार वन मंडल के बिलाईगढ़ वन परिक्षेत्र अंतर्गत विद्यमान है । सख्त जमीन, खुश्क पत्थर , सूखा नजारा , मीलों तक पाषाण , हरियाली का नामो निशान भी नहीं ।
वन विभाग ने सन 2020 में इस पर हरीतिमा बिखेरने का बीड़ा उठाया और इसके लिए गाताडीह के 454 कंपार्टमेंट की 152 हेक्टेयर बंजर भूमि का चयन किया गया । कैंपा मद के अंतर्गत रेल कॉरिडोर क्षतिपूर्ति सिंचित मिश्रित वृक्षारोपण के तहत इस चुनौती को स्वीकार किया गया और शुरू हुई एक अभिनव योजना की पहल।
पाषाण में हरियाली बिखेरने के लिए क्या कुछ जतन नहीं करना पड़ा लेकिन विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों ने तब ही दम लिया जब सफलता हाथ लगी | आज इस परिक्षेत्र में रोपित लगभग एक लाख छप्पन हजार पौधे 2 साल में वृक्ष का रूप धरने लगे हैं । इस मिश्रित वृक्षारोपण में सागौन के वृक्षों के अलावा करंज, नीम ,शीशम, आम ,आंवला ,कटहल , बादाम आदि , इस परिक्षेत्र को नैसर्गिक हरियाली से आच्छादित कर रहे हैं । इस चुनौतीपूर्ण वृक्षारोपण के लिए सारा का सारा महकमा जुझारू हो गया । पथरीली बंजर जमीन में गड्ढे खोदे गए ,उसको जुताई के काबिल बनाया गया , फिर गड्ढों में आवश्यक पोषक तत्व और खाद डाली गई । जहां-तहां घास के कॉरिडोर बनाए गए पौधों को जानवरों से बचाए रखने के लिए बारबेड वायर और चैन लिंक की फेंसिंग की गई ।
सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए 13 ट्यूबवेल खोदे गए जिनमें 7 ट्यूबवेल सोलर पैनल और पंप की सहायता से लगातार भूगर्भीय जल उपलब्ध करा रहे हैं । जल संरक्षण के अंतर्गत दो हार्वेस्टिंग टैंक और दो परकुलशन टैंक निर्मित किए गए वहीं 8 तालाबों की खुदाई की गई । मृदा संरक्षण के तहत कंटूर ट्रेंच का निर्माण किया गया जिससे सख्त सतही जमीन में नमी बरकरार रखी जा सके । पौधों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा श्रमिक भी तैनात किए गए।
देखते ही देखते 2 सालों में इस परिक्षेत्र का दर्शन ही बदल गया और इसके सुहाने कल की कल्पना सहज ही की जा सकती है । सागौन के वृक्ष 18 सेंटीमीटर की शानदार गोलाई के साथ लगभग 7 से 8 फीट ऊंचे हो चुके हैं, वही नीम के वृक्ष 24 सेंटीमीटर गोलाई के साथ 15 से 20 फीट की ऊंचाई पा चुके हैं । इसे उत्तम परिणाम भी कहा जा सकता है।
कैंपा के वरिष्ठ अधिकारियों का मार्गदर्शन और कनिष्ठ कर्मचारियों का अथक श्रम यहां बिखरे हरे रंग के रूप में परिलक्षित हो रहा है । ऐसा हरा रंग जो बंजर पड़त भूमि को हरियाली ओढा कर पर्यावरण में हरीतिमा बिखेरने आतुर है और आने वाली पीढ़ियों के लिए अविस्मरणीय भी । कैम्पा मद के सदुपयोग का इससे उत्कृष्ट उदाहरण विरला ही परिलक्षित होगा ।